जानिए सरकार ने अचानक क्यों लिया जाति जनगणना का फैसला

केंद्र सरकार द्वारा जाति आधारित जनगणना कराने का निर्णय कोई अचानक लिया गया फैसला नहीं है, बल्कि यह एक सुविचारित रणनीति का हिस्सा है। सरकारी सूत्रों के अनुसार इस फैसले के पीछे कई अहम कारण हैं – जैसे 2029 में महिला आरक्षण लागू करने की तैयारी, बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र राजनीतिक संदेश देना, मुस्लिम समुदाय में पिछड़े वर्गों की पहचान करना, और विपक्ष को उसके प्रमुख मुद्दे से वंचित करना। साथ ही, यह फैसला आगामी परिसीमन प्रक्रिया को ध्यान में रखकर भी लिया गया है।

सरकारी सूत्रों का कहना है कि सरकार इस निर्णय से पहलगाम आतंकी हमले से ध्यान भटकाने की कोशिश नहीं कर रही है। यह फैसला लंबे समय से विचार-विमर्श के बाद लिया गया है और बीजेपी नेतृत्व इस विषय पर मुख्यमंत्रियों एवं उपमुख्यमंत्रियों को पहले ही संकेत दे चुका था।

क्या होगा बदलाव?

जनगणना की प्रश्नावली में इस बार कुछ अहम बदलाव किए जाएंगे। अब इसमें धर्म के साथ-साथ जाति का कॉलम भी जोड़ा जाएगा और यह सभी धर्मों के अनुयायियों के लिए अनिवार्य होगा। मुस्लिम समुदाय के लोगों से भी उनकी जाति पूछी जाएगी ताकि पसमांदा यानी सामाजिक रूप से पिछड़े मुसलमानों की पहचान हो सके। हालांकि, संविधान धर्म के आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता, इसलिए इस जानकारी का इस्तेमाल सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े मुसलमानों के लिए आरक्षण की मांग को मजबूती देने के लिए हो सकता है।

फैसले की टाइमिंग पर सवाल

कुछ राजनीतिक हलकों में इस फैसले की टाइमिंग को लेकर सवाल उठ रहे हैं, खासकर तब जब पूरा देश पहलगाम आतंकी हमले के दोषियों को सजा देने की प्रतीक्षा कर रहा है। हालांकि, सूत्रों का कहना है कि यह निर्णय काफी पहले से नियोजित था और अब इसे लागू किया जा रहा है।

महिला आरक्षण और परिसीमन से जुड़ा है फैसला

सरकार का लक्ष्य है कि 2029 तक लोकसभा में महिलाओं को 33% आरक्षण देने का कानून लागू किया जा सके। इसके लिए परिसीमन आयोग की रिपोर्ट आवश्यक है, जो जनसंख्या के अद्यतन आंकड़ों के बिना संभव नहीं है। 2021 में होनी थी जनगणना, लेकिन कोविड महामारी के कारण यह टल गई थी। अब यह प्रक्रिया तेज की जा रही है।

कैसे होगी जनगणना?

जनगणना अगले 2-3 महीनों में शुरू की जाएगी और यह प्रक्रिया 15 दिनों में पूरी की जाएगी। इस बार जनगणना डिजिटल तरीके से की जाएगी। एन्यूमरेटरों को स्मार्टफोन और ऐप आधारित उपकरण दिए जाएंगे। यह ऐप आधार से जुड़ा होगा और बायोमेट्रिक व एआई तकनीकों का भी इस्तेमाल किया जाएगा ताकि प्रक्रिया पारदर्शी और सटीक हो सके।

क्या होगा इसके बाद?

जनसंख्या आंकड़ों का विश्लेषण करने में 1-2 साल का समय लगेगा। इसके बाद एक विस्तृत रिपोर्ट सामने आएगी जिसमें पहली बार जातिवार आंकड़े उपलब्ध होंगे। विभिन्न जातियों की पहचान केंद्र और राज्य सरकारों की अधिसूचनाओं के आधार पर की जाएगी। अंतरजातीय विवाह और ऐसे लोग जो जाति बताना नहीं चाहते, उनके लिए भी प्रावधान रखे जाएंगे।

आगे का रास्ता

बिहार, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों में पहले ही जातिगत सर्वे हो चुके हैं, जिनमें ओबीसी की संख्या काफी अधिक पाई गई है। यदि केंद्र की जनगणना में भी यही प्रवृत्ति सामने आती है तो ओबीसी आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने की मांग उठ सकती है। सरकार इस पर विचार कर सकती है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को दिए गए 10% आरक्षण की तरह सीटों की संख्या बढ़ाकर समाधान निकाला जाए। हालांकि, 50% की संवैधानिक सीमा को पार करने का अभी कोई विचार नहीं है।

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