परिचय
सुनील छेत्री भारतीय फुटबॉल के सबसे चमकते सितारों में से एक हैं। उन्हें भारतीय फुटबॉल का “कैप्टन फैंटास्टिक” भी कहा जाता है। छेत्री न केवल भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वाधिक गोल करने वाले खिलाड़ियों में भी शामिल हैं। उनकी मेहनत, नेतृत्व क्षमता और खेल के प्रति समर्पण ने उन्हें भारत के महानतम फुटबॉलरों में शुमार कर दिया है।
प्रारंभिक जीवन और करियर की शुरुआत
सुनील छेत्री का जन्म 3 अगस्त 1984 को सिकंदराबाद, तेलंगाना में हुआ था। उनका बचपन फुटबॉल के माहौल में बीता क्योंकि उनकी माँ और उनके पिता दोनों ही खेल से जुड़े हुए थे। छेत्री ने अपनी फुटबॉल यात्रा स्कूल और स्थानीय क्लबों से शुरू की और जल्द ही अपनी प्रतिभा की वजह से राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने लगे।
क्लब करियर
छेत्री ने अपने पेशेवर करियर की शुरुआत मोहन बागान से की। इसके बाद उन्होंने जेसीटी, कंसास सिटी विजार्ड्स (USA), चर्चिल ब्रदर्स, डेम्पो, स्पोर्टिंग क्लब डी गोवा, बेंगलुरु एफसी और मुंबई सिटी एफसी जैसी टीमों के लिए खेला। बेंगलुरु एफसी में उनका योगदान बेहद खास रहा, जहाँ उन्होंने टीम को कई चैंपियनशिप जिताने में मदद की।
अंतरराष्ट्रीय करियर
सुनील छेत्री ने भारतीय राष्ट्रीय टीम के लिए 2005 में पदार्पण किया और तब से वे टीम के सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी रहे हैं। वह भारत के लिए सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी हैं और सक्रिय फुटबॉलरों में क्रिस्टियानो रोनाल्डो और लियोनेल मेसी के बाद तीसरे स्थान पर आते हैं।
छेत्री के कुछ प्रमुख रिकॉर्ड:
भारत के लिए सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय गोल (90+ गोल)
भारतीय टीम के सबसे ज्यादा मैच खेलने वाले खिलाड़ी
SAFF चैंपियनशिप और एशियाई खेलों में शानदार प्रदर्शन
अर्जुन पुरस्कार (2011) और पद्म श्री (2019) से सम्मानित
सुनील छेत्री का प्रभाव और विरासत
सुनील छेत्री सिर्फ एक फुटबॉल खिलाड़ी ही नहीं बल्कि युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत भी हैं। उन्होंने भारतीय फुटबॉल को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया है और देश में फुटबॉल को लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाई है। उनका “मैसेज टू इंडियन फुटबॉल फैन्स” वीडियो, जिसमें उन्होंने भारतीय दर्शकों से स्टेडियम में आकर टीम को सपोर्ट करने की अपील की थी, सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और भारत में फुटबॉल के प्रति बढ़ती दिलचस्पी को दिखाया।
सुनील छेत्री भारतीय फुटबॉल का गौरव हैं। उनका संघर्ष, अनुशासन और मेहनत हर युवा खिलाड़ी के लिए प्रेरणा है। उनकी सफलता यह साबित करती है कि अगर जुनून और समर्पण हो, तो भारत भी फुटबॉल की दुनिया में बड़ा मुकाम हासिल कर सकता है।