कुछ दिनों पहले, मैं मथुरा-कोसी से दिल्ली लौट रहा था। रास्ते में, मैंने एक छोटे से ढाबे पर रुकने का फैसला किया। वह ढाबा एक आम ढाबे से अलग था। वहाँ के मालिक ने मुझे बताया कि वे अपने ढाबे पर बचे हुए खाने को गरीबों और जरूरतमंदों को देते हैं।
उनकी बात सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने सोचा कि यह एक बहुत ही अच्छा काम है। हमारे देश में कई लोग ऐसे हैं जो दिन भर में पर्याप्त भोजन नहीं कर पाते हैं। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति अपने बचे हुए खाने को गरीबों और जरूरतमंदों को देता है, तो यह एक बहुत ही बड़ा काम है।
ढाबे के मालिक ने मुझे बताया कि वे अपने ढाबे पर बचे हुए खाने को गरीबों और जरूरतमंदों को देने के लिए एक विशेष प्रणाली बनाई है। वे अपने ढाबे पर एक बड़ा डिब्बा रखते हैं, जिसमें वे बचे हुए खाने को रखते हैं। फिर वे उस खाने को गरीबों और जरूरतमंदों को देते हैं।
उनकी इस पहल ने मुझे बहुत प्रेरित किया। मैंने सोचा कि अगर हम सभी अपने बचे हुए खाने को गरीबों और जरूरतमंदों को देने के लिए एक विशेष प्रणाली बनाएं, तो हम अपने देश में भुखमरी को कम कर सकते हैं।
इस ढाबे की कहानी ने मुझे यह भी सिखाया कि पैसों के साथ पुण्य भी कमाया जा सकता है। हमारे देश में कई लोग ऐसे हैं जो सिर्फ पैसा कमाते हैं, लेकिन वे पुण्य नहीं कमाते हैं। लेकिन इस ढाबे के मालिक ने मुझे दिखाया कि पैसों के साथ पुण्य भी कमाया जा सकता है।
इसलिए, मैं आप सभी से अनुरोध करता हूं कि आप भी अपने बचे हुए खाने को गरीबों और जरूरतमंदों को देने के लिए एक विशेष प्रणाली बनाएं। इससे हम अपने देश में भुखमरी को कम कर सकते हैं और पुण्य भी कमा सकते हैं।