जब भी फुलेरा का नाम लिया जाता है, तो कई कहानियाँ और किस्से दिमाग में घूमने लगते हैं। इन्हीं किस्सों में से एक है उस लड़के की कहानी, जो प्लानिंग में माहिर है लेकिन किस्मत से हर बार मात खा जाता है। इस बार कहानी ने मोड़ लिया, जब वह कोहिमा में फंस गया और उसका सामना हुआ हाथीराम चौधरी से।
फुलेरा की शुरुआत और बम बहादुर से पहली भिड़ंत
फ़कौली बाजार के पास का यह लड़का प्लानिंग में तो उस्ताद है, लेकिन फुलेरा की गलियों में बम बहादुर से पाला पड़ा तो उसकी योजनाओं की धज्जियां उड़ गईं। यहाँ से शुरुआत हुई उस सिलसिले की, जो उसे कोहिमा तक ले गया।
कोहिमा में हाथीराम चौधरी का सामना
कोहिमा के हालात अलग थे। यहाँ न केवल वह लड़का फंसा बल्कि उसकी योजनाओं पर पानी फेरने के लिए खुद हाथीराम चौधरी मैदान में उतरे। हाथीराम की पहचान उनके अडिग स्वभाव और चतुराई भरी सोच से होती है। उनके इलाके में गलतियाँ करने वाले को माफ़ी नहीं मिलती।
मुखबिरी और गोली का खेल
कोहिमा में लड़के ने चालाकी दिखाने की कोशिश की और हाथीराम की मुखबिरी कर दी। बदले में उसे एक गोली तो मिली, लेकिन वह नहीं जानता था कि हाथीराम “हाथी की याददाश्त” लेकर चलते हैं। यह वही बात है, जिसे खुद उनकी पत्नी ने भी स्वीकारा है।
बबलू भाई का अंत और सीख
हाथीराम चौधरी की रणनीति के चलते लड़के की चालाकियाँ बुरी तरह नाकाम रहीं। बबलू भाई, जो उसके भरोसे खड़े थे, पूरे मामले में बुरी तरह फँस गए और हारकर रह गए। इस पूरे घटनाक्रम ने साबित किया कि योजनाओं से ज्यादा जरूरी है सही समय पर सही फैसले लेना।
अंत में
यह कहानी सिर्फ एक लड़के और हाथीराम चौधरी के टकराव की नहीं है। यह उन सभी के लिए एक सबक है जो सिर्फ योजनाएँ बनाते हैं लेकिन अमल के समय चूक जाते हैं। फुलेरा से लेकर कोहिमा तक की यह कहानी बताती है कि चालाकी और धोखाधड़ी से ज्यादा जरूरी है ईमानदारी और सही सोच।