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जापानी युवक की अनोखी दीवानगी: कुत्ते की तरह रहने के लिए बनाया 12 लाख रुपये का कॉस्ट्यूम

जापान के एक युवक, टोको, की कुत्तों के प्रति दीवानगी इस हद तक बढ़ गई कि उन्होंने खुद को कुत्ते की तरह दिखाने और जीने का फैसला कर लिया। इसके लिए उन्होंने एक खास डॉग कॉस्ट्यूम बनवाया, जो हूबहू असली कुत्ते जैसा दिखता है। इस पोशाक की लागत लगभग 12 लाख रुपये आई। अब किराए पर दे रहे हैं डॉग कॉस्ट्यूमटोको ने अपने इस अनोखे कॉस्ट्यूम को अब किराए पर देना शुरू कर दिया है। जो भी व्यक्ति कुत्ते की तरह रहने का अनुभव लेना चाहता है, वह इस पोशाक को किराए पर ले सकता है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट (SCMP) की रिपोर्ट के अनुसार, टोको जापान के पूर्व-मध्य होंशू में रहते हैं और उन्होंने अपने पसंदीदा कुत्ते की नस्ल, कोली, की पोशाक तैयार करवाई है। किराए की दरेंटोको ने इस डॉग कॉस्ट्यूम के किराए की दरें निर्धारित की हैं: तीन घंटे के लिए: 320 डॉलर (लगभग 28,000 रुपये) दो घंटे के लिए: 235 डॉलर (लगभग 20,400 रुपये) इस अनोखी पेशकश ने दुनियाभर के लोगों का ध्यान खींचा है, और सोशल मीडिया पर इसे लेकर कई तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कुछ लोग इसे असाधारण जुनून मान रहे हैं, तो कुछ इसे अजीबोगरीब शौक के रूप में देख रहे हैं। हालांकि, टोको का मानना है कि यह उनके बचपन के सपने को जीने का एक तरीका है।

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डंकी रूट: अवैध लेकिन लाभदायक! संघर्ष बनाम अवसर

जब आजीविका और आर्थिक स्थिरता की बात आती है, तो कई भारतीय युवा विदेश जाने का सपना देखते हैं। खासकर जब वे उच्च शिक्षित या विशेष कुशल नहीं होते, तो विकल्प सीमित हो जाते हैं। इसी स्थिति में “डंकी रूट” एक आकर्षक लेकिन जोखिमभरा विकल्प बन जाता है। आर्थिक गणित: निवेश और लाभ डंकी रूट से अमेरिका जाने के लिए औसतन ₹30 लाख तक की लागत आती है। वहां पहुंचकर, व्यक्ति लॉन कटाई, सफाई या अन्य शारीरिक श्रम के कार्यों में लग जाते हैं, जहां उन्हें प्रति घंटे लगभग $10 की मजदूरी मिलती है। वहीं, सुपरवाइजर प्रति घंटे $14-15 कमा कर $4-5 की बचत करता है। साप्ताहिक 40 घंटे की नौकरी करने पर, ये प्रवासी हर महीने लगभग $1600 (₹1.36 लाख) कमाते हैं। रहने के लिए 12-15 लोग मिलकर एक घर किराए पर लेते हैं, जिससे प्रत्येक व्यक्ति को लगभग ₹8,500 ($100) किराया और ₹17,000 ($200) अन्य खर्चों के लिए देना होता है। इस तरह, वे हर महीने लगभग $1000 (₹85,000) बचा लेते हैं। सालभर में यह बचत ₹10.20 लाख तक पहुंच जाती है, जिससे शुरुआती निवेश मात्र तीन साल में वसूल हो जाता है। भारत बनाम विदेश: संभावनाओं की तुलना अगर भारत में ₹30 लाख निवेश किया जाए, तो क्या तीन साल में यह वसूल किया जा सकता है? सामान्य परिस्थितियों में, बिना उच्च योग्यता के यह असंभव सा लगता है। भारत में ₹1 लाख प्रति माह बचत कर पाना मुश्किल है, जबकि अमेरिका में यह संभव हो जाता है। डॉलर और रुपये का अनुपात (87:1) इस अवसर को और आकर्षक बनाता है। विदेश में कमाई का उपयोग इस बचत से लोग: बहन की शादी के लिए ₹5 लाख की व्यवस्था कर सकते हैं। परिवार को एक ऑटो-रिक्शा दिलाकर स्थायी आय का स्रोत बना सकते हैं। घर की आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकते हैं। डंकी रूट की बढ़ती लोकप्रियता हालांकि यह मार्ग अवैध है, लेकिन सीमित कानूनी विकल्पों के कारण कई लोग इसे अपनाने को मजबूर हैं। अमेरिका में श्रमिक वीज़ा प्राप्त करना भारतीयों के लिए कठिन होता है। मैक्सिकन या पूर्वी यूरोपीय नागरिकों के लिए यह आसान होता है, जिससे भारतीयों को अवैध मार्ग अपनाने के लिए बाध्य होना पड़ता है। अन्य देशों में भी स्थिति समान केवल अमेरिका ही नहीं, बल्कि सऊदी अरब, दुबई और अन्य खाड़ी देशों में भी भारतीय श्रमिक 12 घंटे की शिफ्ट में काम कर ₹90,000 प्रति माह कमा सकते हैं। वहां रहने-खाने की लागत कम होने के कारण वे ₹60,000 तक बचा सकते हैं। पाँच वर्षों में वे ₹35-40 लाख जोड़कर अपने वतन लौट सकते हैं और व्यवसाय शुरू कर सकते हैं। निष्कर्ष जब तक रुपये और डॉलर के बीच इतना बड़ा अंतर रहेगा, यह प्रवृत्ति बनी रहेगी। विदेश में काम करके जल्दी और अधिक बचत करने का आकर्षण बना रहेगा। हालांकि यह रास्ता कानूनी नहीं है, लेकिन सीमित अवसरों के कारण यह जारी रहता है। यही कारण है कि डंकी रूट की लोकप्रियता समय के साथ कम नहीं हो रही है।

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Salaah Mashavira: सही मार्गदर्शन से सफलता की ओर

आज के प्रतिस्पर्धी दौर में बिजनेस ग्रोथ और व्यक्तित्व विकास के लिए सही मार्गदर्शन की जरूरत होती है। Salaah Mashavira एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जो आपको बिजनेस और पर्सनालिटी डेवलपमेंट में सफलता पाने के लिए बेस्ट गाइडेंस देता है। खास बात यह है कि यहां प्रसिद्ध जर्नलिस्ट और लेखक पीयूष जैन के अनुभवों से भी सीखने का मौका मिलेगा। कौन हैं पीयूष जैन? पीयूष जैन एक प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक हैं, जिन्होंने मीडिया और लेखन के क्षेत्र में बड़ा नाम कमाया है। उनकी पहली किताब “बेकार से पत्रकार” काफी चर्चित रही है, जिसमें उन्होंने पत्रकारिता जगत के संघर्ष और अनुभवों को साझा किया है। अब, Salaah Mashavira के माध्यम से वे लोगों को बिजनेस ग्रोथ और पर्सनालिटी डेवलपमेंट में मार्गदर्शन देने जा रहे हैं। Salaah Mashavira क्यों खास है? ✔ बिजनेस ग्रोथ स्ट्रेटेजी – सही योजना और रणनीति से अपने बिजनेस को ऊंचाइयों तक ले जाने की सलाह।✔ व्यक्तित्व विकास – आत्मविश्वास बढ़ाने और प्रभावी संवाद कौशल विकसित करने में मदद।✔ मास्टर क्लास और मेंटरशिप – इंडस्ट्री के विशेषज्ञों द्वारा व्यावहारिक मार्गदर्शन।✔ करियर गाइडेंस – नौकरी और फ्रीलांसिंग के लिए सही दिशा दिखाने वाली कोचिंग। जल्द ही उपलब्ध! अगर आप भी अपने करियर में नई ऊंचाइयों तक पहुंचना चाहते हैं या बिजनेस ग्रोथ में सही गाइडेंस चाहते हैं, तो Salaah Mashavira से जुड़ें और अपने भविष्य को संवारें। अधिक जानकारी के लिए विजिट करें: www.SalaahMashavira.com📞 Call: +91 74149 74149

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अपूर्वा मखीजा को आईफा प्रमोटरों की सूची से हटाया गया

सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर और कंटेंट क्रिएटर अपूर्वा मखीजा को आईफा (IIFA) प्रमोटरों की आधिकारिक सूची से बाहर कर दिया गया है। यह फैसला उनके हाल ही में हुए विवाद के चलते लिया गया है, जिसमें उन्होंने एक शो के दौरान आपत्तिजनक बयान दिए थे। क्या है पूरा मामला? अपूर्वा मखीजा, जिन्हें ‘रेबल किड’ के नाम से भी जाना जाता है, सोशल मीडिया पर अपने ह्यूमर और कंट्रोवर्शियल कंटेंट के लिए प्रसिद्ध हैं। हाल ही में, वे ‘इंडियाज गॉट लैटेंट’ नामक एक शो में शामिल हुई थीं, जहां उनके साथ यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया और आशीष चंचलानी भी मौजूद थे। इस शो के दौरान की गई कुछ टिप्पणियां दर्शकों को आपत्तिजनक लगीं, जिसके कारण उन पर विवाद खड़ा हो गया। इस विवाद के चलते राजपूत करणी सेना सहित विभिन्न संगठनों ने उनके खिलाफ प्रदर्शन किया और मांग की कि उन्हें किसी भी बड़े मंच से न जोड़ा जाए। इतना ही नहीं, राजस्थान के कोटा जिले में उनके खिलाफ कानूनी शिकायत भी दर्ज की गई। आईफा 2025 से हटाया गया नाम आईफा 2025 का आयोजन 8-9 मार्च को जयपुर में होने वाला है। अपूर्वा मखीजा का नाम पहले आईफा प्रमोटरों की सूची में शामिल था, लेकिन विवाद बढ़ने के बाद आयोजकों ने उनका नाम सूची से हटा दिया। यह निर्णय आईफा के ब्रांड इमेज को सुरक्षित रखने और दर्शकों की भावनाओं का सम्मान करने के उद्देश्य से लिया गया। अपूर्वा की प्रतिक्रिया विवाद बढ़ने के बाद, अपूर्वा मखीजा ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सार्वजनिक रूप से माफी जारी की। उन्होंने कहा कि उनका इरादा किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का नहीं था और भविष्य में वे अपने शब्दों को लेकर अधिक सतर्क रहेंगी। सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया इस पूरे विवाद पर सोशल मीडिया पर मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली। कुछ लोग अपूर्वा के समर्थन में आए और इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़कर देखा, जबकि अन्य लोगों ने उनके बयानों को अनुचित और आपत्तिजनक करार दिया। निष्कर्ष अपूर्वा मखीजा का आईफा प्रमोटरों की सूची से हटना यह दर्शाता है कि सार्वजनिक मंचों पर दिए गए बयानों का व्यापक प्रभाव पड़ता है। यह घटना उन सभी सोशल मीडिया क्रिएटर्स के लिए एक सीख हो सकती है कि किसी भी विषय पर बोलने से पहले उसके प्रभावों पर विचार करना आवश्यक है। क्या आप इस मामले में अपूर्वा मखीजा के समर्थन में हैं, या आपको लगता है कि आयोजकों ने सही निर्णय लिया? अपनी राय हमें कमेंट सेक्शन में बताएं!

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बाइक बंद करने के बाद टिक-टिक की आवाज क्यों आती है?

कई बार जब हम बाइक चलाने के बाद उसे बंद करते हैं, तो कुछ समय तक उसमें से “टिक-टिक” की आवाज आती रहती है। यह आवाज कई लोगों को परेशान कर सकती है, और उन्हें लग सकता है कि उनकी बाइक में कोई खराबी है। लेकिन असल में, यह एक सामान्य प्रक्रिया है और चिंता की कोई बात नहीं है। इस आवाज के पीछे का वैज्ञानिक कारण बाइक का इंजन और एग्जॉस्ट सिस्टम चलते समय बहुत गर्म हो जाते हैं। जब बाइक चलती है, तो इंजन और एग्जॉस्ट की धातु गर्म होकर फैलती है। जैसे ही बाइक बंद की जाती है, ये धातुएं ठंडी होने लगती हैं और सिकुड़ती हैं। इसी थर्मल कॉन्ट्रैक्शन (thermal contraction) के कारण टिक-टिक जैसी आवाज आती है। क्या यह किसी खराबी का संकेत है? नहीं, यह पूरी तरह से सामान्य प्रक्रिया है और इसे लेकर घबराने की कोई जरूरत नहीं है। यह सभी बाइक और कारों में देखने को मिलता है, खासकर उन इंजनों में जो लंबे समय तक चले हों या जिनकी एग्जॉस्ट पाइप धातु की बनी होती है। किन स्थितियों में सतर्क रहना चाहिए? हालांकि यह आवाज सामान्य होती है, लेकिन अगर आपकी बाइक में लगातार कोई असामान्य आवाजें आ रही हैं, जैसे – तेज़ धातु के टकराने जैसी आवाजें इंजन से झटकेदार आवाजें बाइक के ठंडा होने के बाद भी आवाज बंद न होना तो आपको एक बार मैकेनिक से बाइक की जांच करवा लेनी चाहिए। इस समस्या से बचने के लिए क्या करें? बाइक को बहुत अधिक गरम होने से बचाएं। नियमित रूप से इंजन ऑयल बदलें। एग्जॉस्ट पाइप और इंजन की सफाई करवाते रहें। निष्कर्ष बाइक बंद करने के बाद टिक-टिक की आवाज आना पूरी तरह से सामान्य है और यह इंजन और एग्जॉस्ट के ठंडा होने की प्रक्रिया का हिस्सा है। यदि कोई अतिरिक्त अजीब आवाज नहीं आ रही है, तो आपको घबराने की जरूरत नहीं है। इसलिए अगली बार जब आपकी बाइक से यह आवाज आए, तो निश्चिंत रहें—यह आपकी बाइक के सही तरीके से काम करने का संकेत भी हो सकता है!

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प्यार और तकरार – रिश्तों की मीठी नोकझोंक

रिश्तों में प्यार जितना खूबसूरत होता है, उतनी ही रोचक होती हैं छोटी-छोटी तकरारें। ऊपर दी गई इमेज में दो बिल्लियों के माध्यम से इस मजेदार रिश्ते को दर्शाया गया है—पहले प्यार और स्नेह से लिपटे हुए, और कुछ ही मिनटों बाद एक-दूसरे से झगड़ते हुए। यह नज़ारा किसी भी रिश्ते की असलियत को दर्शाता है, चाहे वह दोस्ती हो, प्रेम संबंध हो या फिर भाई-बहन का रिश्ता। रिश्तों में प्यार और झगड़े क्यों होते हैं? प्यार और झगड़ा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब दो लोग एक-दूसरे के बेहद करीब होते हैं, तो उनके विचार, पसंद-नापसंद और स्वभाव में अंतर होना स्वाभाविक है। यही अंतर कभी-कभी तकरार की वजह बन जाते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि रिश्ते में कड़वाहट आ गई। बल्कि, ये छोटी-मोटी नोकझोंक रिश्तों को मजबूत बनाती हैं। झगड़े के बाद रिश्ते और गहरे क्यों हो जाते हैं? रिश्तों को खूबसूरत बनाए रखने के टिप्स ✔ संचार महत्वपूर्ण है – कभी भी गलतफहमियों को बढ़ने न दें, खुलकर बात करें।✔ छोटी बातों को नजरअंदाज करें – हर मुद्दे को बड़ा बनाने से बचें और छोटी गलतियों को माफ करें।✔ सम्मान बनाए रखें – बहस के दौरान भी एक-दूसरे की भावनाओं की कद्र करें।✔ साथ में समय बिताएं – व्यस्त जीवनशैली में भी साथ समय बिताने से प्यार बना रहता है। निष्कर्ष रिश्तों में प्यार और झगड़े दोनों जरूरी होते हैं। यह छोटे-छोटे झगड़े ही हैं जो हमें सिखाते हैं कि हम एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकते। इसीलिए, अगर आपके किसी करीबी से कभी बहस हो जाए, तो उसे दिल से न लगाएं, बल्कि प्यार और समझदारी से रिश्ते को और मजबूत बनाएं। क्योंकि आखिर में, सच्चे रिश्ते वही होते हैं जहां ‘आई लव यू’ और ‘तू गलत है’ – दोनों एक साथ चलते हैं!

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फुलेरा से कोहिमा तक: लड़के की कहानी और हाथीराम चौधरी का सामना

जब भी फुलेरा का नाम लिया जाता है, तो कई कहानियाँ और किस्से दिमाग में घूमने लगते हैं। इन्हीं किस्सों में से एक है उस लड़के की कहानी, जो प्लानिंग में माहिर है लेकिन किस्मत से हर बार मात खा जाता है। इस बार कहानी ने मोड़ लिया, जब वह कोहिमा में फंस गया और उसका सामना हुआ हाथीराम चौधरी से। फुलेरा की शुरुआत और बम बहादुर से पहली भिड़ंत फ़कौली बाजार के पास का यह लड़का प्लानिंग में तो उस्ताद है, लेकिन फुलेरा की गलियों में बम बहादुर से पाला पड़ा तो उसकी योजनाओं की धज्जियां उड़ गईं। यहाँ से शुरुआत हुई उस सिलसिले की, जो उसे कोहिमा तक ले गया। कोहिमा में हाथीराम चौधरी का सामना कोहिमा के हालात अलग थे। यहाँ न केवल वह लड़का फंसा बल्कि उसकी योजनाओं पर पानी फेरने के लिए खुद हाथीराम चौधरी मैदान में उतरे। हाथीराम की पहचान उनके अडिग स्वभाव और चतुराई भरी सोच से होती है। उनके इलाके में गलतियाँ करने वाले को माफ़ी नहीं मिलती। मुखबिरी और गोली का खेल कोहिमा में लड़के ने चालाकी दिखाने की कोशिश की और हाथीराम की मुखबिरी कर दी। बदले में उसे एक गोली तो मिली, लेकिन वह नहीं जानता था कि हाथीराम “हाथी की याददाश्त” लेकर चलते हैं। यह वही बात है, जिसे खुद उनकी पत्नी ने भी स्वीकारा है। बबलू भाई का अंत और सीख हाथीराम चौधरी की रणनीति के चलते लड़के की चालाकियाँ बुरी तरह नाकाम रहीं। बबलू भाई, जो उसके भरोसे खड़े थे, पूरे मामले में बुरी तरह फँस गए और हारकर रह गए। इस पूरे घटनाक्रम ने साबित किया कि योजनाओं से ज्यादा जरूरी है सही समय पर सही फैसले लेना। अंत में यह कहानी सिर्फ एक लड़के और हाथीराम चौधरी के टकराव की नहीं है। यह उन सभी के लिए एक सबक है जो सिर्फ योजनाएँ बनाते हैं लेकिन अमल के समय चूक जाते हैं। फुलेरा से लेकर कोहिमा तक की यह कहानी बताती है कि चालाकी और धोखाधड़ी से ज्यादा जरूरी है ईमानदारी और सही सोच।

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Starbucks का नया नियम: बिना कुछ खरीदे नहीं कर सकेंगे वॉशरूम या फ्री वाई-फाई का इस्तेमाल

नई नीति और उसकी शुरुआतदुनिया भर में अपनी बेहतरीन कॉफी और आरामदायक माहौल के लिए मशहूर Starbucks ने ग्राहकों के लिए नया नियम लागू किया है। अब कैफ़े में बिना कोई प्रोडक्ट खरीदे प्रवेश करना या बैठकर वॉशरूम इस्तेमाल करना संभव नहीं होगा। अगर आपको वाई-फाई की सुविधा या वॉशरूम की जरूरत है, तो आपको कैफ़े से कुछ खरीदना अनिवार्य होगा। यह नया नियम 27 जनवरी से लागू होगा। इस कदम का उद्देश्य कैफ़े में अनावश्यक भीड़ और अव्यवस्था को रोकना है। नियम का पालन और सुरक्षा सुनिश्चित करनाStarbucks ने इस नीति को कड़ाई से लागू करने की योजना बनाई है। अब कोई भी ग्राहक बिना प्रोडक्ट खरीदे अंदर बैठने या सुविधाओं का लाभ उठाने की अनुमति नहीं पाएगा। साथ ही, कैफ़े में अनुशासन बनाए रखने के लिए अतिरिक्त सावधानी बरती जाएगी। एल्कोहॉल का सेवन, स्मोकिंग, या ड्रग्स का इस्तेमाल सख्ती से प्रतिबंधित रहेगा। अगर कोई व्यक्ति ऐसा करते हुए पाया जाता है, तो उसे तुरंत बाहर निकालने की कार्रवाई की जाएगी। ज़रूरत पड़ने पर पुलिस की सहायता भी ली जा सकती है। Starbucks की नई नीति का उद्देश्यStarbucks का यह नया नियम कैफ़े को एक स्वस्थ और सकारात्मक माहौल प्रदान करने की दिशा में उठाया गया कदम है। यह नीति न केवल ग्राहकों को बेहतर अनुभव देने में मदद करेगी बल्कि कैफ़े की सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखने में भी सहायक होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बदलाव को ग्राहकों द्वारा कैसा रिस्पॉन्स मिलता है और अन्य कैफ़े चेन इस नीति को अपनाने पर विचार करते हैं या नहीं।

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महाकुंभ, आध्यात्म और सोशल मीडिया: मोक्ष का नया ट्रेंड

महाकुंभ हमेशा से आस्था, परंपरा और धर्म का संगम रहा है। यहां गंगा की पवित्र धाराएं आत्मा को शुद्ध करती हैं और मोक्ष की कामना करने वाले करोड़ों भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। लेकिन इस बार महाकुंभ में एक नया ट्रेंड देखने को मिला है—आध्यात्म और सोशल मीडिया का अद्भुत मेल। यह कहानी है दो अलग-अलग दुनिया के लोगों की। एक ओर हैं हर्षा रिछारिया, जो सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और साध्वी के रूप में अपनी पहचान बना रही हैं। दूसरी ओर हैं अभय सिंह, एक IITian, जो लाइक, शेयर और सब्सक्राइब के चक्र से निकलकर मोक्ष की तलाश में आए हैं। आध्यात्म और सोशल मीडिया का कॉकटेल हर्षा रिछारिया की कहानी सोशल मीडिया के नए ट्रेंड को बखूबी बयां करती है। उनकी रील्स और पोस्ट्स में आध्यात्मिकता का एक अलग ही अंदाज है। उनके अनुयायी, जो गंगा स्नान के बजाय इंस्टाग्राम स्क्रॉल करना पसंद करते हैं, उनके पोस्ट पर ‘जय साध्वी मां’ कमेंट करना नहीं भूलते। उनके लिए मोक्ष का मतलब है एक बेहतरीन कैप्शन के साथ वायरल होती रील। हर्षा का मानना है कि आज की दुनिया में आत्मज्ञान और फॉलोअर्स की गिनती साथ-साथ चल सकती है। उनका हर पोस्ट एक अलग संदेश देता है—कैसे गंगा स्नान के दौरान सही एंगल में फोटो खिंचवाया जाए या कैसे साधना करते हुए लाइव स्ट्रीम किया जाए। IITian की मोक्ष की यात्रा दूसरी तरफ अभय सिंह की कहानी है। अभय, जो देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान IIT के स्नातक हैं, ने सोशल मीडिया की दौड़ में खुद को थका हुआ पाया। लाइक और कमेंट्स की चाह ने उन्हें इस कदर प्रभावित किया कि वे वास्तविक सुख की तलाश में महाकुंभ आ पहुंचे। उनका मानना है कि मोक्ष का असली मतलब है इन डिजिटल चेन को तोड़ना और आत्मा की सच्ची तृप्ति पाना। IITian के इस कदम ने कई सवाल खड़े किए हैं। क्या आज का युवा सफलता की परिभाषा बदल रहा है? क्या मोक्ष की तलाश अब आध्यात्मिकता के बजाय डिजिटल डिटॉक्स की ओर बढ़ रही है? महाकुंभ का बदलता स्वरूप इस बार महाकुंभ का दृश्य थोड़ा अलग है। गंगा किनारे डुबकी लगाने वाले कम और कैमरा सेट करने वाले ज्यादा हैं। लोग अब मोक्ष के लिए ध्यान नहीं, बल्कि परफेक्ट फोटो के लिए पोज दे रहे हैं। हर्षा और अभय जैसे लोग इस बदलाव के प्रतीक हैं। जहां हर्षा रील्स और कैप्शन के जरिए आध्यात्म को नई पीढ़ी तक पहुंचाने में लगी हैं, वहीं अभय ने डिजिटल दुनिया को अलविदा कहकर शांति की तलाश में कदम बढ़ाया है। दो रास्ते, एक लक्ष्य हर्षा और अभय, दोनों का लक्ष्य एक ही है—आत्मा की तृप्ति। फर्क बस इतना है कि हर्षा का रास्ता इंस्टाग्राम और फॉलोअर्स के जरिए गुजरता है, जबकि अभय का रास्ता गंगा की लहरों और ध्यान की गुफा से। आज का महाकुंभ सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि बदलते वक्त का आईना भी है। यह दिखाता है कि कैसे आध्यात्म और डिजिटल दुनिया का मेल हमारी परंपराओं को नए तरीके से परिभाषित कर रहा है। तो चाहे आप हर्षा की तरह लाइक और सब्सक्राइब में मोक्ष ढूंढ रहे हों या अभय की तरह साइलेंस मोड पर मोक्ष की तलाश में हों, महाकुंभ आपको अपनी यात्रा शुरू करने का एक मौका जरूर देता है। सवाल बस इतना है—आपका रास्ता कौन सा है?

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