भारत में पत्रकारिता: एक खतरनाक पेशा और लोकतंत्र पर संकट
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, लेकिन भारत में यह स्तंभ दिनों-दिन कमजोर होता जा रहा है। पत्रकारों की हत्या, उत्पीड़न, और धमकियों की घटनाएं न केवल उनकी स्वतंत्रता को बाधित करती हैं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों को भी चोट पहुंचाती हैं। पत्रकारों की हत्याओं के आंकड़े 1993 से अब तक दुनिया भर में 1728 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है, जिसमें से एशिया में 457 और भारत में 60 पत्रकार शामिल हैं। भारत में हर साल औसतन तीन से चार पत्रकारों की हत्या होती है। ये आंकड़े यह दर्शाते हैं कि भारत पत्रकारों के लिए एक खतरनाक देश बन गया है। रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स (RSF) द्वारा जारी 2023 के प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत को 180 देशों में से 162वां स्थान दिया गया है। यह रैंकिंग यह स्पष्ट करती है कि भारत में पत्रकारों को स्वतंत्र और निर्भीक होकर काम करने में कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सामना कर रहे खतरे भारत में पत्रकारों को अक्सर शक्तिशाली राजनीतिक, आर्थिक, और आपराधिक समूहों की आलोचना करने के लिए निशाना बनाया जाता है। इनमें निम्नलिखित चुनौतियां शामिल हैं: लोकतंत्र पर प्रभाव पत्रकारों की स्वतंत्रता पर हमले केवल व्यक्तिगत हानियां नहीं हैं, बल्कि यह पूरे समाज और लोकतंत्र को प्रभावित करते हैं। जब पत्रकार सच बोलने से डरते हैं, तो महत्वपूर्ण मुद्दे जनता तक नहीं पहुंच पाते। इससे पारदर्शिता और जवाबदेही कमजोर होती है। संस्थाओं की भूमिका यूनेस्को और रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स जैसी संस्थाओं ने पत्रकारों की सुरक्षा पर चिंता जताई है। इन संगठनों ने सरकारों से पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और दोषियों को सजा देने की मांग की है। समाधान की दिशा में कदम निष्कर्ष भारत में पत्रकारों की स्थिति चिंताजनक है। उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना न केवल एक नैतिक जिम्मेदारी है, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है। सरकार, समाज, और मीडिया संस्थानों को मिलकर काम करना होगा ताकि पत्रकार निडर होकर सच्चाई जनता तक पहुंचा सकें। पत्रकारिता को एक खतरनाक पेशा बनने से बचाना ही लोकतंत्र की रक्षा है।
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